
नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली स्थित श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में ‘विकसित भारत @2047 एवं राष्ट्र सर्वोपरि’ विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में चित्रकूट स्थित तुलसी पीठाधीश्वर, धर्मचक्रवर्ती, पद्मविभूषण, ज्ञानपीठ आदि पुरस्कारों से सम्मानित, जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज का विशिष्ट उद्बोधन हुआ। भारत को सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाने को लेकर हुए इस संगोष्ठी का शुभारंभ स्वामी श्री रामभद्राचार्य महाराज, उनके उत्तराधिकारी आचार्य श्री रामचन्द्र दास जी तथा कुलपति महोदय के द्वारा दीप प्रज्वालन के साथ हुआ।
तत्पश्चात्त वेद विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. गोपाल प्रसाद शर्मा एवं प्रो. रामानुज उपाध्याय द्वारा वैदिक मंगलाचरण के साथ विधिवत उद्घाटन सम्पन्न हुआ। इसके उपरांत विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो.मुरलीमनोहर पाठक ने विधि—विधान से जगद्गुरु जी की पादुका पूजन किया। इस दौरान वेद विभाग के आचार्यों – प्रो. गोपाल प्रसाद शर्मा, प्रो. रामानुज उपाध्याय, प्रो. सुंदर नारायण झा और प्रो. हनुमान मिश्र ने पुरुषसूक्त का सस्वर पाठ किया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन व्याकरण विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रामसलाही द्विवेदी जी तथा कार्यक्रम का संयोजन विकसित भारत @2047 के नोडल अधिकारी एवं वेद विभागाध्यक्ष प्रोफेसर देवेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया। पूजन के पश्चात् वेदवेदांगपीठाध्यक्ष प्रोफेसर देवीप्रसाद त्रिपाठी , वरिष्ठाचार्य प्रोफेसर प्रेमकुमार शर्मा, व्याकरणशास्त्र के परम मनीषी प्रोफेसर जयकान्त शर्मा, कुलसचिव डॉ, संतोष कुमार श्रीवास्तव, उप कुलसचिव श्री अजय कुमार टंडन, कम्प्यूटर विभाग के प्रमुख श्री बनवारी लाल वर्मा द्वारा जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज का शाल, श्रीफल एवं माल्यार्पण के साथ भव्य स्वागत किया गया।
विकसित भारत @2047 के नोडल अधिकारी एवं वेद विभागाध्यक्ष प्रो. देवेन्द्र प्रसाद मिश्र ने आचार्य श्री रामचन्द्र दास जी का भी सम्मानपूर्वक स्वागत किया। इसके उपरान्त कुलपति महोदय ने जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी के अभिनन्दन पत्र का वाचन किया, जिसमें उनके तप, ज्ञान और राष्ट्र सेवा की भावपूर्ण प्रशंसा की गई।
संस्कार संपन्नता और एकता ही विकसित राष्ट्र का महामंत्र है
एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के आरम्भ में धर्मचक्रवर्ती ज्ञानपीठ पद्मविभूषण इत्यादि पुरस्कारों से समलंकृत श्रीचित्रकूट तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामभद्राचार्य महाराज ने विशिष्ट विद्वानों की सन्निधि में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के विकसित भारत @2047 एवं राष्ट्र सर्वोपरि अभियान की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि रामराज्य सापेक्ष राज्य की संकल्पना को भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी साकार करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है। इस दौरान कुंभ टीवी से बात करते हुए स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि संस्कृत से व्यक्ति संस्कारित होगा और संस्कृति से व्यक्ति एक हो जाता है। संस्कार संपन्नता और एकता ही विकसित राष्ट्र का महामंत्र है।
भक्ति के बिना विद्या होती है विधवा
जगद्गुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी ने कहा कि “भक्ति के बिना विद्या विधवा होती है। विद्वान् को भगवत्भक्ति परायण होना चाहिए। संसार से तारने हेतु श्री सीतारामजी जहाज़ के समान हैं। भगवत्सम्बन्ध के अतिरिक्त सारे सम्बन्ध मिथ्या और अनित्य हैं। अतः मनुष्य को अपने समस्त भावों के साथ भगवान् के चरणारविन्दों में अर्पित हो जाना चाहिए।” उनकी तात्त्विक व्याख्या, भावपूर्ण भाषा और भक्तिरस से ओतप्रोत विचारों ने विद्वत्परिषद् को अभिभूत कर दिया।
देवपुरुष हैं जगद्गुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य
लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरलीमनोहर पाठक जी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि “इस समय धरती में महाराज जी के समान विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न कोई और व्यक्तित्व नहीं है, महाराज जी साक्षात् देवपुरुष हैं, इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है।” चित्रकूट धाम की महत्ता पर श्री तुलसीदास जी की पंक्तियाँ उद्धृत करते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा “चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेश। जापर विपदा पड़त है, सो आवत यह देश॥” भारत सरकार के ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ अभियान की हृदय से प्रशंसा करते हुए कहा “राष्ट्र ही देवता है। उसकी आराधना प्रत्येक भारतवासी का पवित्र कर्तव्य है।”
इस भव्य अवसर पर देशभर से पधारे शताधिक विद्वानों की सन्निधि में यह संगोष्ठी अत्यन्त उत्साहपूर्वक सम्पन्न हुई। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के सभी सम्मानित पीठाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, अधिकारी, कर्मचारी और शताधिक संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।